श्री वामनेश्वर धाम मंदिर
यह तपो भूमि सतयुग में सिद्धाश्रम व्याघ्रसर, बक्सर आदि नामों से प्रसिद्ध है। ऋषि कश्यप और अदिति की तपस्या से प्रसन्न होकर राजा बलि के यज्ञ में देव-दानवों को उनका यथोचित अंश देने के लिए भगवान विष्णु ने अपने पंचम् अवतार में वामन भगवान के रूप में अवतार लिया । वह क्षेत्र वामनाश्राम के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
आज भी भाद्र-पद शुक्ल पक्ष द्वादशी को वृहद मेला लगता है । अभी वर्तमान में यह मंदिर केंद्रीय कारागार के अंदर अवस्थित है ।
राम रेखा घाट

भगवान राम धर्मपरायण चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के संतान थे । वे ताड़का नाम की राक्षसी का वध नहीं करना चाहते थे क्योंकी वह स्त्री थी। महर्षि विश्वामित्र ने बताया कि आततायी का वध करना सर्वथा धर्म संगत है –
आततायी बधार्हणः।
इसलिए वध करने में कोई संशय नहीं है। इसलिए गुरू की आज्ञा को शिरोधार कर
गुरोर्आज्ञा गरीयसी
उन्होंने राक्षसी का अंत कर दिया।
भगवान राम ने वध करने के बाद रामरेखा घाट पर जाकर स्नान किया।
रामेश्वर नाथ मंदिर
भगवान श्री राम चंद्र जी ने ताड़का एवं सुबाहु का वध करने के उपरांत रामरेखा घाट पर स्नान किये । वहाँ अपने आराध्य भगवान शंकर की पिंड बनाकर जलाभिषेक किए। यह स्थान आज रामेश्वर नाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है ।





पंचकोसी यात्रा
महत्व–महर्षि विश्वामित्र ने यज्ञ संपन्न कराने हेतु दशरथ नन्दनराम-लक्ष्मण को सिद्धाश्रम वर्तमान बक्सर में लाये थे । यज्ञ में ताड़का-सुबाहु नामक राक्षसों का वध करके यज्ञ की पूर्णाहुति करायी । तत्पश्चात महर्षि विश्वामित्र के मार्गदर्शन में सिद्धाश्रम क्षेत्र में विराजमान ऋषियों का दर्शन कराने हेतु भ्रमण में निकले। जिस मार्ग से गये वह आज पंचकोसी मार्ग के नाम से प्रसिद्ध है ।
अहिरौली




यहाँ गौतम ऋषि का आश्रम है । जहाँ ऋषि के श्राप से अहिल्या पाषाण में परिवर्तित हो गईं थीं । वह श्री राम के चरण से स्पर्श पाते ही वह अपने स्वरूप में आ गई। इस प्रकार श्री राम के चरण रज से अहिल्या का उद्धार हुआ। यहाँ भगवान को पुआ-पूरी बनाकर भोग लगाया जाता है । आज भी भक्तगण यही व्यंजन ग्रहण करते हैं । आज भी उत्सव के रूप मे अहिल्या आश्रम अहिरौलों में मनाया जाता है।
नदाँव
अहिल्या उद्धार के बाद अगले दिन भगवान अहिल्या आश्रम से नारदाश्रम जाते हैं प्राचीन काल का नारद ऋषि का आश्रम आज नदाँव नाम से प्रसिद्ध है। आज भी यहाँ लोग प्राचीन मूर्तियों के दर्शन करते हैं । यहाँ स्नान ध्यान के उपरान्त, नारद ऋषि ने भगवान को सतुआ और मुली खिलाया। जो कालांतर में प्रसाद के रूप मे ग्रहण किया जाने लगा। नारद आश्रम में नारद सरोवर आज भी विद्यमान है।




भभुअर



भगवान राम जहाँ भार्गव ऋषि की तपस्या करते थे, आज उस आश्रम को भभुअर नाम से जाना जाता है। यहाँ पर भार्गव ऋषि को दही – चूड़ा का भोग लगाया जाता था । आज भी उसी परम्परा का अनुसरण करते हुए दर्शानार्थी एवं संतगण वही प्रसाद ग्रहण करते हैं।
उनुआंव
यहाँ ऋषि उद्दालक तपस्या करते थे । श्री रामचंद्र जी यहाँ आकर ऋषियों के दर्शन किये एवं सत्तू-मूली-नमक का भोग लगाया था और रात्रि विश्राम किया था । भार्गव आश्रम, भभुअर से रात्रि विश्राम के बाद प्रभुवर गुरु के साथ उद्दालक आश्रम छाटेका नुऑव पहुँचे वहाँ खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण किया।
चरित्रवण
आज जहाँ विश्वामित्र का आश्रम माना जाता है, वहाँ लिट्टी-चोखा का भोग लगाया जाता है । श्रेत्र में वह आज भी प्रसिद्ध है।
एक कहावत है –
माई बिसरी हो, बाबु बिसरी
पंचकोस के लिट्टी – चोखा नाही बिसरी।
आज भी उत्तर प्रदेश, बिहार आदि प्रांतो से भक्त आते हैं और लिट्टी-चोखा का प्रसाद बनाकर सगे-संबंधियों में भी बाँटते हैं ।
आज भी सिद्धाश्रम क्षेत्र में सभी धर्मावलंबियों के घर में लिट्टी चोखा अवश्य ही बनता है ।
वशिष्ट कुंड (विश्राम पोखरा)
यह आज बसांव मठीया के नाम से प्रसिद्ध है । वहाँ सभी संत-महात्माओं, आगंतुक भक्तों को प्रसाद ग्रहण कराकर ही विदाई करने की परंपरा अनवरत काल से चली आ रही है ।
नाथ मंदिर




सन् 1962 में नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध संत बाबा पधारे थे और अपने अनुयायी भक्तों के सहयोग से नाथ संप्रदाय के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य कराने का कार्य प्रारंभ किया । आठ साल के निर्माण के बाद 1970 के दशक में मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हुई थी।
राम चबुतरा
भगवान श्री राम इसी चबूतरे पर बैठकर संध्या किया करते थे । इसी कारण यह आज राम चबूतरा के नाम से प्रसिद्ध है।

नवलखा मंदिर




त्रिदंडी स्वामी महाराज की प्रेरणा से नवलखा मंदिर का निर्माण हुआ।
सन् 1976 में इसका निमार्ण संपन्न हुआ । इसके निर्माण का दायित्व मुंम्बई के दानवीर भक्त वासदेव सोमानी पर था।
गौरी-शंकर मंदिर (सिद्धनाथ मंदिर )
भगवान श्री राम के आराध्य भगवान शंकर के यहाँ कई मंदिर हैं, जिसमें पंचमुखी मंदिर, सोमेश्वर नाथ मंदिर आदि हैं । इन दर्शनीय स्थलों का भक्तगण नियमित दर्शन करते हैं ।
लक्ष्मी-नारायण मंदिर
त्रिदंडी लक्ष्मी नारायण की विग्रह वाला यह मंदिर प्राचीन काल से प्रसिद्ध है। स्वामी महाराज इस मंदिर के मठाधीश हुआ करते थे।
श्रीनिवास मंदिर
यह मंदिर भी वैष्णव संप्रदाय के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। 8 वीं गद्दी पर विराजमान श्री श्री 1008 राजगोपालाचार्य त्यागी जी महाराज के मार्गदर्शन में भक्तगण भजन कीर्तन एवं निवास कर प्रभु की कृपा पाते हैं।
समाधि स्थल (श्री आचार्य पीठम्)

त्रिदंडी स्वामी के परम शिष्य जीयर स्वामी ने अपने गुरू के परलोक गमन उपरांत उनकी स्मृति में इसका निर्माण कराया जो आज समाधि स्थल के नाम से प्रसिद्ध है। पूरे भारत में फैले त्रिदंडी स्वामी के शिष्यगण पुण्यतिथि पर आकर श्रद्धानमन् कर गुरू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
सोखा बाबा मंदिर
वर्तमान बक्सर के सिकरौल थाना अंतर्गत सौखार नामक जगह पर अवस्थित है । इसके बारे में एक सत्य कथा है कि मुगलों ने इस मंदिर पर आक्रमण किया तो ग्रामवासियों ने इसकी पवित्रता, दिव्यता और जाग्रत्ता से मुगल सेनानायक को बाताया । सेनानायक ने परिहास करते हुए कहा कि जब तुम्हारे इष्ट में इतनी शक्ति है तो इसका दरवाजा पूर्व से पश्चिम् हो जायेगा तो हम इसको नष्ट नहीं करेंगे । ग्रामवासियों ने सोखा बाबा से अपनी शक्तियों से मन्दिर रक्षण का पूजन किया । बाबा की शक्ति एवं ईश्वरीय कृपा से इस मंदिर का मुख्य द्वार रात में पूर्व की दिशा से पश्चिम की तरफ हो गया । तब से यह मंदिर श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
ब्रह्मपुर-ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर

भगवान ब्रह्मा के द्वारा स्थापित इस शिवलिंग की पूजा आज भी होती है । यह मंदिर ब्रह्मेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। शिवरात्रि एवं श्रावण मास में लाखों भक्तों की भीड़ यहाँ लगती है। प्रत्येक सोमवार को शिव जलाभिषेक के लिए लोगों को प्रतीक्षा करनी पड़ती है । आस-पास के कई जनपदों के श्रद्धालु भगवान आशुतोष की झांकी एवं अभिषेक पूजन करने हेतु आते हैं।
तुलसी आश्रम
रघुनाथपुर स्टेशन के निकट में तुलसी आश्रम अवस्थित है। जहाँ तुलसीदास जी ने तपस्या की थी। यहीं से उन्हें राम चरित मानस जैसे महाकाव्य की रचना करने की प्रेरणा मिली इसके बाद वे विश्व के प्राचीनतम् नगर काशी में रहकर श्री राम चरित मानस ग्रंथ की रचना की।
बसाव मठ मंदिर
सिकरौल थाना अंतर्गत प्रसिद्ध मंदिर है। जहाँ तिरुपति बाला जी के विग्रह वेंकटेश भगवान की भव्य प्रतिमूर्ति विराजमान है।
कंजिया धाम मंदिर
शिव चैतन्य ब्रह्मचारी जो पूर्व में शिव शंकर उपाध्याय के नाम से प्रसिद्ध थे। एक गृहस्त आश्रम में रहते हुए संयासी के तरह जीवन व्यतित करने वाले प्रसिद्ध संत-पशुपति नाथ बाबा के सानिध्य में रहकर भव्य मंदिर का निर्माण कराया । सिकरौल थाना अंतर्गत इस मंदिर में लक्ष्मी-नारायण भगवान की विग्रह स्थापित है ।
श्री राम जानकी मंदिर

श्री राम जानकी मंदिर
श्री सोमेश्वर स्थान मंदिर
श्री सोमेश्वर स्थान मंदिर


माँ भलुनी भवानी मंदिर ( दिनाय)

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माँ काली मंदिर (डुमराव)
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माँ डुमरेजनी मंदिर

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ब्रम्ह विद्यालय एवं आश्रम (छोटका राजपुर)
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शहीद स्मारक कमलदह पोखरा पार्क


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